Sunday, October 11, 2009

पुत्र को लेकर आहत थीं बा

बड़े बेटे हरिलाल के इसलाम धर्म कबूल करने से न केवल महात्मा गांधी बल्कि उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी बेहद आहत थीं। उन्होंने इस संबंध में अपने इस पुत्र के साथ ही उसके मुसलिम दोस्तों को भी पत्र लिखा था।
इन पत्रों में न केवल एक मां की ममता की बेबसी झलकती है बल्कि यह भी पता चलता है कि वह धार्मिक रूप से किस कदर सहिष्णु थीं। बा ने 27 सितंबर 1936 को हरिलाल को लिखे एक पत्र में इस बात पर हैरानी जताई थी कि उसने अपना प्राचीन धर्म क्यों बदल लिया। वह इस बात को सोच-सोच कर भी बेहद दुखी होती थीं कि हरिलाल ने धर्म परिवर्तन के बाद मांस का सेवन शुरू कर दिया होगा।
उन्होंने पत्र में लिखा था कि मुझे कई बार हैरानी होती है कि तुम कहां रहते, कहां सोते हो और क्या खाते हो। हो सकता है कि तुम मांस खाते हो। ऐसी ही अनगिनत बातों ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी है।
इन दिनों सुर्खियों में छाई फिल्म 'गांधी माई फादर' में महात्मा गांधी और हरिलाल के संबंधों को चिन्हित किया गया है, लेकिन फिल्म में इन पत्रों का जिक्र नहीं है जो बा के व्यथित मन में झांकने का मौका देते हैं।
बा धार्मिक रूप से सहिष्णु थीं उसका पता भी इस पत्र से चलता है जिसमें उन्होंने हरिलाल से कहा था, 'यह तुम्हारा मामला है। लेकिन मैंने सुना है कि तुम भोले-भाले लोगों से अपना अनुकरण करने को कह रहे हो। तुम धर्म के बारे में क्या जानते हो। तुम अपनी सीमाओं को क्यों नहीं समझ रहे हो।'
बा इस बात से भी बेहद दुखी थीं कि हरिलाल के कारण उनके पति की छवि प्रभावित हो रही है। उन्होंने पत्र में कहा भी था कि लोग इस बात से प्रभावित होते हैं कि तुम अपने पिता के पुत्र हो। मैं तुमसे विनती करती हूं कि जिंदगी में कुछ क्षण ठहरकर इन सब चीजों पर विचार करो और मूर्खतापूर्ण हरकतें बंद करो।
अपने पिता के विशाल व्यक्तित्व के विपरीत जिंदगी भर तमाम उठा पटक झेलने वाले और लगभग भिखारी का सा जीवन बिताने वाले हरिलाल के बारे में कस्तूरबा गांधी को लगता था कि उनके मुसलिम दोस्तों ने उसे इसलाम ग्रहण करने के लिए प्रलोभन दिया।
बा ने हरिलाल के मुसलिम दोस्तों को भी 27 सितंबर 1936 को एक पत्र लिखकर कहा था कि मैं तुम लोगों की कार्रवाई को समझ नहीं पा रही हूं। मैं जानती हूं और इस बात को सोचकर खुश हूं कि बड़ी संख्या में विचारवान मुसलमान और हमारे लंबे समय से दोस्त रहे मुसलिम मित्र इस पूरी घटना की निंदा कर रहे हैं।
बा को कहीं न कहीं इस बात की उम्मीद थी कि धर्मातरण से उनके पुत्र का कुछ भला होगा, लेकिन उन्होंने इस पत्र में लिखा कि मेरे बेटे का भला होने के बजाय मैंने पाया है कि उसके तथाकथित धर्मातरण ने वास्तव में मामले को और बिगाड़ दिया है। कुछ लोग तो इस हद तक चले गए हैं कि उसे मौलवी का खिताब दे दिया जाए। क्या तुम्हारा धर्म मेरे बेटे जैसे व्यक्ति को मौलवी कहलाने की अनुमति देता है।
उन्होंने उनके मुसलिम दोस्तों को समझाते हुए लिखा था कि तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह कतई उसके हित में नहीं है। यदि तुम्हारी इच्छा मुख्य रूप से हमारी हंसी उड़वाना है तो मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना है।
बा के इस पत्र में एक मां की ममता की बेबसी झलकती है। उन्होंने लिखा कि मुझे लगता है यह मेरा कर्तव्य है कि मैं तुम लोगों से भी वही बात दोहराऊं जो मैं अपने बेटे को बता रही हूं कि तुम भगवान की नजर में ठीक नहीं कर रहे हो।

सिवान में बनी थी बिहार की पहली जनता सरकार
सिवान लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने दलविहीन शासन व संपूर्ण क्रांति का दर्शन देकर जो आंदोलन खड़ा किया, उसने निरंकुश लोकतंत्र की चूलें हिला दीं। बौखलाई सरकार ने तब इसका जमकर दमन किया। सन् 1974 में बिहार विधान सभा घेराव के क्रम में उनपर लाठियां बरसीं। आक्रोशित लोकनायक ने तब बिहार में सरकार के समानांतर 'जनता सरकार' बनाने की घोषणा कर दी। सूबे की ऐसी पहली जनता सरकार सिवान जिले के पचरूखी प्रखंड में बनी थी। बाद में नवादा, बिहारशरीफ व जुमई में भी जनता सरकारें बनाई गई।
जयप्रकाश का मानना था कि भारत में सच्चे लोकतंत्र की जगह दलतंत्र स्थापित हो गया है। राजनीतिक दलों की भूमिका से असंतुष्ट जेपी दलविहीन लोकतंत्र चाहते थे। समाज में आमूल-चूल परिवर्तन कर एक आदर्श व वर्ग-विहीन समाज की स्थापना को ले उन्होंने संपूर्ण क्रांति की अवधारणा भी दी। उन्होंने 9 दिसंबर, 1973 को वर्धा में एक अपील जारी कर देश के युवकों से लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक संगठन बनाने को कहा। जेपी ने सन् 1974 में बिहार आंदोलन की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में 'छात्र संघर्ष समिति' का गठन किया गया। छात्रों व युवाओं की यह समिति 'जनसंघर्ष समिति' में शामिल बुजुर्गो से समन्वय स्थापित कर शंातिपूर्ण आंदोलन कर रही थी। इसी क्रम में 2 से 4 नवंबर, 1974 को जयप्रकाश के नेतृत्व में पटना में विधान सभा का घेराव किया गया, जिसपर सरकार की लाठियां चलीं। इसमें जेपी भी घायल हुए। आहत जेपी ने तब बिहार में सरकार के समानांतर 'जनता सरकार' बनाने का ऐलान कर दिया। प्रखंड व आगे विभिन्न स्तरों पर बनने वाली इस सरकार के पास प्रशासनिक अधिकार तो नहीं होते, लेकिन वह जनमत के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाती। जेपी के आह्वान पर अप्रैल, 1974 में इसके लिए पटना में हुई बैठक में सिवान जिला के छात्र संघर्ष समिति के संयोजक जनकदेव तिवारी ने प्रस्ताव दिया कि ऐसी पहली प्रखंड स्तरीय जनता सरकार जिले के पचरूखी में बनाई जाए। फिर मई, 1975 में सिवान के राजेंद्र खादी भंडार में दादा धर्माधिकारी, आचार्य राममूर्ति व सिद्धराज ढढ्डा, दिनेश भाई व अमरनाथ भाई आदि की मौजूदगी में एक बैठक हुई। इसमें पचरूखी के गांधी हाई स्कूल में 1 जून, 1975 को जनता सरकार की घोषणा करने का निर्णय लिया गया। जनकदेव तिवारी के अनुसार इसके बाद आंदोलनकारियों ने लगातार बैठकें कर प्रस्तावित सरकार की रूपरेखा तय की। जेपी अंादोलन के सिलसिले में बनी 'छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी' के संगठन प्रभारी रहे महात्मा भाई ने बताया कि निर्धारित स्थल पर जैसे ही इस सरकार की घोषणा की गई, वहां मौजूद अंादोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें कवि नागार्जुन, राज इंक्लाब, शहीद सुहरावर्दी, जहीद परसौनी, जेडए जाफरी आदि हस्तियां भी शामिल थीं। इस दौरान स्थानीय दीपेंद्र वर्मा, जनकदेव तिवारी, कुमार विश्वनाथ, हैदर अली, गंगा विशुन साह, मैथिली कुमार श्रीवास्तव, नयन कुमार, रमेश कुमार व अशोक राय सहित महात्मा भाई भी गिरफ्तार किए गए थे। महात्मा भाई ने बताया कि आगे 15 जून, 1975 को नवादा के कौवाकोल व 17 जून को बिहारशरीफ के एकरंगसराय में प्रखंड स्तरीय जनता सरकारें बनीं। फिर 23 जून को जमुई में आचार्य राममूर्ति के नेतृत्व में भी ऐसी सरकार बनी। इसके बाद आपातकाल की घोषणा के साथ जयप्रकाश गिरफ्तार कर लिए गए। आपातकाल के बाद सन् 1977 के लोक सभा चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी की सरकार को बनवाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन जेपी अपने सिद्धांतों को अमली जामा पहनाने के लिए अधिक दिनों जीवित नहीं रह सके। सन् 1902 के 11 अक्टूबर को सिताब दियारा में जन्में जेपी 8 अक्टूबर, 1979 को देश को शोकाकुल इस धराधाम को छोड़ गए।
- AMIT ALOK